नई दिल्ली, 31 जुलाई 2025: सुप्रीम कोर्ट ने संसद से कहा है कि दलबदल कानून के तहत विधायकों की अयोग्यता तय करने की मौजूदा व्यवस्था पर दोबारा विचार करे। कोर्ट का कहना है कि विधानसभा स्पीकर की देरी से लोकतंत्र को खतरा हो रहा है। यह बात तेलंगाना में बीआरएस के विधायकों की अयोग्यता याचिका पर सुनवाई के दौरान कही गई, जो कांग्रेस में चले गए थे।
कोर्ट ने तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को आदेश दिया कि वह तीन महीने के अंदर इन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लें। कोर्ट ने नाराजगी जताई कि सात महीने तक स्पीकर ने याचिका पर कोई नोटिस तक नहीं भेजा, जिससे दलबदल कानून कमजोर हो रहा है।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की बेंच ने कहा कि अगर याचिकाएं विधानसभा के कार्यकाल तक लटकी रहें, तो यह ऐसा है जैसे “ऑपरेशन तो सफल हो गया, लेकिन मरीज मर गया।” यानी दलबदल करने वाले विधायक इसका फायदा उठा रहे हैं।
सुनवाई में यह भी कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 136, 226 और 227 के तहत स्पीकर के फैसलों की जांच की जा सकती है, लेकिन इसका दायरा सीमित है। कोर्ट ने यह भी बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच के सामने भी लंबित है।
बीआरएस नेताओं, जैसे के.टी. रामा राव और पादी कौशिक रेड्डी ने याचिका दायर की थी, जिसमें 10 विधायकों के खिलाफ जल्दी कार्रवाई की मांग की गई थी। ये विधायक 2023 के चुनाव में बीआरएस के टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में कांग्रेस में चले गए। कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया, जिसमें स्पीकर को चार हफ्ते में सुनवाई का समय तय करने का आदेश दिया गया था।
कोर्ट ने स्पीकर को चेतावनी दी कि दलबदल करने वाले विधायकों को सुनवाई में देरी करने की इजाजत न दे, वरना उनके खिलाफ सख्त रवैया अपनाया जा सकता है। कोर्ट ने संसद से कहा कि वह इस व्यवस्था की समीक्षा करे कि क्या स्पीकर को अयोग्यता का फैसला करने का जिम्मा देना सही है या नहीं, ताकि लोकतंत्र की रक्षा हो सके।
