सार्थक कुमार
मधेपुरा सुशासन में स्वास्थय केंद्रों की दशा सुधरी। दवाओं की व्यवस्था हुई। चिकित्सकों की उपस्थिति सुनिश्चित की गई। तब भी जिले की एक बहुत बड़ी आबादी के लिए स्वास्थय सेवा आकाश कुसुम ही बनी हुर्ई है। इन लोगों को आज भी उन्हीं की आस है जिन्हें लोगों झोला छाप कहते हैं।
ग्रामीण इलाकों में रात के समय अचानक तबियत बिगड़ जाने पर इनके सिवा दूसरा कोई आसरा नहीं होता। इतने के बावजूद ग्रामीण चिकित्सकों को इस बात का मलाल है कि सरकार द्वारा इन्हें किसी प्रकार का लाभ नहीं मिल रहा है।
यह समय का फेर है कि आज हम नहीं होते तो ग्रामीण क्षेत्र के कितने लोग असमय काल की गाल में समा गये रहते। सरकारी सेवा की जो हालात है वह किसी से छिपी नहीं है। लेकिन इस समाज में ऐसे भी लोग हैं जो हमें देखकर फब्तियां कसते हैं जबकि आपात स्थिति में उन्हें भी हमारी ही आस होती है।
ये शब्द ग्रामीण चिकित्सकों की है जो दिन-रात ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की सेवा करते है।